! कुछ नहीं !
में कुछ नहीं
यह जानता हूँ
तू कुछ नहीं
यह देखा था मैंने
में कुछ नहीं
कह जाती है दुनिया अक्सर
तू कुछ नहीं
विज्ञान के मरीज़ बडबडाते हैं
में कुछ नहीं
समझा जब उसने पलट के भी नहीं देखा
तू कुछ नहीं
लगा जब एक बच्चे को मरते देखा
में कुछ नहीं
ब्रह्माण्ड की सीमा है अनंत देखा
तू कुछ नहीं
शायद मानव ने वहाँ तक अभी नहीं देखा
में कुछ नहीं
मुश्किल था, पर समझा
तू कुछ नहीं !
क्योंकि मुझमें भी तू है, अब समझा !
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