! कुछ नहीं !

nothing-012

में कुछ नहीं
यह जानता हूँ
तू कुछ नहीं
यह देखा था मैंने

में कुछ नहीं
कह जाती है दुनिया अक्सर
तू कुछ नहीं
विज्ञान के मरीज़ बडबडाते हैं

में कुछ नहीं
समझा जब उसने पलट के भी नहीं देखा
तू कुछ नहीं
लगा जब एक बच्चे को मरते देखा

में कुछ नहीं
ब्रह्माण्ड की सीमा है अनंत देखा
तू कुछ नहीं
शायद मानव ने वहाँ तक अभी नहीं देखा

में कुछ नहीं
मुश्किल था, पर समझा
तू कुछ नहीं !
क्योंकि मुझमें भी तू है, अब समझा !

में ग़ज़ल क्यों सुनता हूँ

Music-moment-memories-meaning

तुम ग़ज़ल क्यों सुनते हो ?
उसने पूछा
क्या उदास हो ?
मुझे तो सब एक जैसी ही लगती हैं
अँधेरे कमरे में पड़े शराब के गिलास सी लगती हैं
बीते हुए लोगों की दबी हुई आवाज़ सी लगती हैं
बदनसीब आशिक की रोंदी सौगात सी लगती हैं
कुछ नया क्यों नहीं सुनते ?
तुम ग़ज़ल क्यों सुनते हो ?

में ग़ज़ल क्यों सुनता हूँ
मैंने कहा
ग़ज़ल के शब्द मुझसे कुछ कह जाते हैं
सब कुछ न समझकर भी ज़हन में रह जाते हैं
उर्दू जुबां ही कुछ ऐसी है
वोह कहते हैं, हम सुन्ते रह जाते हैं
दर्द को लफ़्ज़ों में सजा देखा है क्या तुम्ने ?
इसलिए में ग़ज़ल सुनता हूँ

तुम ग़ज़ल क्यों सुनते हो ?
उसने पूछा
ग़ज़ल तुम्हे दर्द की याद दिलाती है
बीते अफसानों में उलझा जाती है
वैसे तोह पत्थर हो, पिघला जाती है
कम्भख्त आदमियों को भी रुला जाती है
क्यों एक छोटी सी छुरी जेब में लिए चलते हो ?
तुम ग़ज़ल क्यों सुनते हो ?

में ग़ज़ल क्यूँ सुनता हूँ
मैंने कहा
ग़ज़ल दर्द से समझौता करवाती है
घाव भरने नहीं देती, मरहम भी लगाती है
आदमी नहीं, ग़ज़ल जिंस से खातून समझ में आती है
जब गाई जाती है, लगता है मेरी महबूबा मुझसे फरमाती है
खुदी से खुद बात करने का हुनर सिखाती है
इसलिए में ग़ज़ल सुनता हूँ


ज़हन=
thought   जिंस= gender  खातून= lady खुदी= ego

Poem by Sohit Khanna

टूट गया वो फूट गया

ART

जब पिछला वाला अटक गया
रुक रुक चलता खटक गया
बूढ़े की तरह बीमार था वोह
सब देख चूका चुप चाप था वो
उसे बदल लिया, मैंने छोड़ दिया

अब नया जो था, खूब चला
सुबह मुझे उठा, रात देर जगा
मेरा दूत वो था, उस्ताद भी था
टूट गया वो फूट गया

अब connected था
नयी धुन में था
अब बड़ा भी था, हल्का भी था
तेज़ भी था, smart भी था
पिछले से कुछ खास भी था
हाथ में था, जान भी था

यह भी झटके से छूट गया
शीशा था, बिखर गया
फिर टूट गया वो फूट गया
phone वोह था या मेरा दिल था ?

Poem & art by Sohit Khanna

अभी देखना बाकी है…

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सुबह देर से उठना
रात को सो न पाना

चुटकुले समझना
हस न पाना

मुस्कुराना
खुश न हो पाना

साँस लेना
जिंदा न रह पाना

कब तक यहीं खड़े रहना है ?
अभी देखना बाकी है… 

बात करना
सब कुछ कह न पाना

सब समझना
समझा न पाना

दोस्ती करना
निभा न पाना

तस्वीरें खीचना
देख न पाना

क्या येही था हमारा अफसाना ?
अभी देखना बाकी है…

बात न करना
चुप भी न रह पाना

कोई हसदे
उससे चिढ़ जाना

उदास रहना
रो न पाना

गुस्से मैं रहना
चिल्ला न पाना

क्या समझ सकते हो तुम ?
अभी देखना बाकी है…

Poem by Sohit Khanna
Art by Vidit Dewan